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आचार्य श्री कनकनन्दी जी का साधना परिचय

आचार्य श्री कनकनन्दी जी का साधना परिचय, व्यक्तित्व एवं कतित्व

मार्गदर्शक-सान्निध्य-शिक्षादातागुरु-आचार्य विमलसागर जी,

आचार्य-भरतसागर जी, आचार्य-विद्यानन्द जी (दिल्ली)

1. अवस्था - ब्रह्मचर्य के विचार

   समयावधि -

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता -

   विशेष विवरण- 14 वर्षकी आयु मेंस्वेच्छा सेस्व-अंत प्ररेणा से आजीवन ब्रह्मचर्य स्वीकारा 

2.अवस्था - ब्रह्मचारी

   समयावधि - 1975

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी ग.आ. विजयामति माताजी

   विशेष विवरण- मंदार गिरी (बिहारी) आगम ग्रंथों का अध्ययन

3. अवस्था - क्षुल्लक

    समयावधि - 1978-80

    दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी

    विशेष विवरण - अभिक्षण ज्ञायोपयोगी (अतिशय क्षेत्र पपौरा)

4. अवस्था - मुनि

   समयावधि -5 फरवरी, 81/ प्रमुख गुरु

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी/ ग.आ. विजयामति माताजी

   विशेष विवरण- श्रवण बेल गोला (कर्णाटक)/ माताजी शिक्षा प्रदात्री

5. अवस्था - उपाध्याय

   समयावधि - 25 नव, 82

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी

   विशेष विवरण- हासन (कर्णाटक)

6.अवस्था - उपाध्याय

   समयावधि - 1985

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी/ आचार्य देशभूषण जी

   विशेष विवरण- सिद्धांत चक्रवर्ती/ समनेवाड़ी (कर्णाटक)

7. अवस्था - एलाचार्य

   समयावधि - 1988

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी

   विशेष विवरण- आरा (बिहार) |

8. अवस्था - एलाचार्य

   समयावधि - 1990

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी/ आचार्य आनंदसागर

   विशेष विवरण-  विश्व धर्म प्रभाकर/ दिल्ली पंचकल्याणक के अवसर पर

9. अवस्था - एलाचार्य

   समयावधि - 1991

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - आचार्य कुंथुसागर जी दि. जैन समाज रोहतक

   विशेष विवरण- ज्ञान-विज्ञान दिवाकर, रोहतक (हरियाणा)

10.अवस्था - आचार्य

   समयावधि - 22 अप्रैल 1996

   दीक्षा/उपाधि प्रदाता - संस्कार आचार्य अभिनंदन सागर जी

   विशेष विवरण- उदयपुर (राज.) आ. पद्मनन्दी जी आदि 60 साधुसाध्वी (सान्निध्य) सकल दि. जैन समाज, उदयपुर

प्रमुख संगठन

1. धर्म दर्शन विज्ञान शोध संस्थान (बड़ौत)

2. धर्म दर्शन सेवा संस्थान, उदयपुर (राज.)

3. देश-विदेश में शखाएँ 

कृतित्व

(13) तेरह राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठियों का आयोजन

(34) चौतीस धर्म-दर्शन-विज्ञान शिविरों का आयोजन ।

 

ग्रंथ प्रकाशन-अभी तक प्रायः 350 ग्रंथों का देश-विदेश की 6 भाषाओं में प्रकाशन।

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II णमोकार मंत्र II​

णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं
एसो पंच णमोयारो, सव्वपावप्पणासणो I
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलम् II

स्तुति

मिथ्यातम नाशवे को, ज्ञान के प्रकाशवे को, आपा-पर भासवे को, भानु-सी बखानी है ।
छहों द्रव्य जानवे को, बन्ध-विधि भानवे को, स्व-पर पिछानवे को, परम प्रमानी है ॥

अनुभव बतायवे को, जीव के जतायवे को, काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।
जहाँ-तहाँ तारवे को, पार के उतारवे को, सुख विस्तारवे को, ये ही जिनवाणी है ॥

हे जिनवाणी भारती, तोहि जपों दिन रैन, जो तेरी शरणा गहै, सो पावे सुख चैन ।
जा वाणी के ज्ञान तैं, सूझे लोकालोक, सो वाणी मस्तक नमों, सदा देत हों ढोक ॥

देव भजो अरिहंत को गुरु सेवा निर्ग्रन्थ दया धर्म पालो सदा यही मोक्ष का पंथ ||

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