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आचार्य कनकनन्दी जी का पुस्तक

फ़ोल्डर

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आहार दान विधि

Aahar Daan Vidhi

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कविता - १

Kavita - 1

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कविता - २

Kavita - 2

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कविता - ३

Kavita - 3

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कविता - ४

Kavita - 4

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कविता - ५

Kavita - 5

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कविता - ६

Kavita - 6

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कविता - ७

Kavita - 7

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कविता - ८

Kavita - 8

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कविता - ९

Kavita - 9

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कविता - १०

Kavita - 10

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कविता - १३

Kavita - 13

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कविता - ११

Kavita - 11

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श्रीसंघ के नियम व कार्यक्रम

Shrisangh ke Niyam va Karykram

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कनकनंदी विधान

Kanaknandi Vidhan

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कविता - १२

Kavita - 12

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वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी का जीव हिंसा के विरोध में उद्घोष

Vaigyanik Dharmacharya Shree Kanaknandi ji ka Jeev Hinsa ke Virodh me Udhghosh

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33 वीं दीक्षा दिवस के स्मरण में रचित

33rd Diksha Divas ke Smaran me Rachit

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कैसे हो जैन धर्म की सुरक्षा एवं सम्वृद्धि

Kaise ho Jain Dharm ki Suraksha evam Samvrudhi

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सकल जैन (दि. श्वे. जैन) धर्मावलम्बिओं से अपिल

Sakal Jain (Dig.Shw. Jain) Dharmavalambhiyon se Appeal

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कनकनंदी विधान

Kanaknandi Vidhan

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त्रय दिवसीय 13वीं अन्तर्राष्ट्रीय धर्म-दर्शन विज्ञान संगोष्ठी

Tray Divsiya 13th Antarashtriya Dharm-Darshan Vigyan Sangoshti

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II णमोकार मंत्र II​

णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं
एसो पंच णमोयारो, सव्वपावप्पणासणो I
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलम् II

स्तुति

मिथ्यातम नाशवे को, ज्ञान के प्रकाशवे को, आपा-पर भासवे को, भानु-सी बखानी है ।
छहों द्रव्य जानवे को, बन्ध-विधि भानवे को, स्व-पर पिछानवे को, परम प्रमानी है ॥

अनुभव बतायवे को, जीव के जतायवे को, काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।
जहाँ-तहाँ तारवे को, पार के उतारवे को, सुख विस्तारवे को, ये ही जिनवाणी है ॥

हे जिनवाणी भारती, तोहि जपों दिन रैन, जो तेरी शरणा गहै, सो पावे सुख चैन ।
जा वाणी के ज्ञान तैं, सूझे लोकालोक, सो वाणी मस्तक नमों, सदा देत हों ढोक ॥

देव भजो अरिहंत को गुरु सेवा निर्ग्रन्थ दया धर्म पालो सदा यही मोक्ष का पंथ ||

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