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आचार्य कनकनन्दी जी का पुस्तक

फ़ोल्डर

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आहार दान विधि

Aahar Daan Vidhi

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जैन एकता व विश्वशान्ति की मेरी मंगल कामना

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आचार्य कनकनन्दी की शोधपुर्ण कवितायें - 1

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आचार्य कनकनन्दी की शोधपुर्ण कवितायें - 2

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आचार्य कनकनन्दी की शोधपुर्ण कवितायें - 3

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हल्दीघाटी में जैन एकता.... विश्व शान्ति

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आचार्य कनकनन्दी की शोधपुर्ण कवितायें - 4

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जैन धर्म का सार (जैन एकता के सूत्र)

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जैन एकता तथा विश्व शान्ति

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देव शास्त्र गुरु एवं धर्म

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सरस्वती/जिनवाणी वन्दना

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सर्वोदयी भारतीय संस्कृति

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श्रीसंघ के नियम व कार्यक्रम

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स्वध्याय तपस्वी वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी विधान

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पढ़ाई क्यों कर रहा हूँ?

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देव शासत्र गुरु भक्ति

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वैज्ञानिक धर्माचार्य श्री कनकनंदी जी का जीव हिंसा के विरोध में उद्घोष

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33 वीं दीक्षा दिवस के स्मरण में रचित

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कैसे हो जैन धर्म की सुरक्षा एवं सम्वृद्धि

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सकल जैन (दि. श्वे. जैन) धर्मावलम्बिओं से अपिल

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कनकनंदी विधान

Kanaknandi Vidhan

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त्रय दिवसीय 13वीं अन्तर्राष्ट्रीय धर्म-दर्शन विज्ञान संगोष्ठी

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II णमोकार मंत्र II​

णमो अरिहंताणं
णमो सिद्धाणं
णमो आयरियाणं
णमो उवज्झायाणं
णमो लोए सव्वसाहूणं
एसो पंच णमोयारो, सव्वपावप्पणासणो I
मंगलाणं च सव्वेसिं, पढम हवइ मंगलम् II

स्तुति

मिथ्यातम नाशवे को, ज्ञान के प्रकाशवे को, आपा-पर भासवे को, भानु-सी बखानी है ।
छहों द्रव्य जानवे को, बन्ध-विधि भानवे को, स्व-पर पिछानवे को, परम प्रमानी है ॥

अनुभव बतायवे को, जीव के जतायवे को, काहू न सतायवे को, भव्य उर आनी है ।
जहाँ-तहाँ तारवे को, पार के उतारवे को, सुख विस्तारवे को, ये ही जिनवाणी है ॥

हे जिनवाणी भारती, तोहि जपों दिन रैन, जो तेरी शरणा गहै, सो पावे सुख चैन ।
जा वाणी के ज्ञान तैं, सूझे लोकालोक, सो वाणी मस्तक नमों, सदा देत हों ढोक ॥

देव भजो अरिहंत को गुरु सेवा निर्ग्रन्थ दया धर्म पालो सदा यही मोक्ष का पंथ ||

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